फिर वो सुबह आई है
आज बहुत दिनों बाद
फिर वो सुबह आई है
उगता सूरज है,कलियाँ चटकाई हैं
चहल पहल है, जिंदगी भरपूर है
खिलते चेहरे हैं, आंखों मे नूर है
दिल के किसी कोने मे बज रही शहनाई है
रंजिश नहीं, द्वेष नहीं
लोग मिलनसार हैं
इक – दूजे की खातिर,मरने – मिटने को तयार हैं
बच्चों की किलकारियां हैं
युवाओं मे बांकपन
बड़े बुजुर्ग भी मचा रहे उधम
सास- बहु की खटपट है
देवर की ठीठोली है
ससुरजी चाय की चुस्की मे, देखे रंगोली है
सुन्दर – सुंदर पकवानों से
रसोई दुल्हन हो ली है
घर की दुल्हन,उन पकवानों से और भी सुंदर हो ली है
रौशनी है, आश्वासन है
बेफिक्र होने का निमंत्रण है
भगवान् की आराधना की आ रही मधुर धुन है
शंकनाद हो रहा है
मुल्लाह की अजान भी
गुरद्वारे मे बट रहा है, छोले – कडाह भी
उजली यूनिफार्म मे नहा – धोकर
बच्चे स्कूल जा रहे हैं तयार हो कर
भविष्य की भविष्य से ,ये नयी लड़ाई है
ठहाके चहूं और हैं, कसरतों का दोअर है
कुछ सिर्फ चल कर, हो रहे, विभोर हैं
चिड़ियों के चेह्कने से निखर उठी पुरवाई है
स्वच्छ है भू, स्वच्छ है नभ
स्वच्छ सारा आवरण
स्वच्छ मन है, स्वच्छ तन है
स्वच्छ है सारा चमन
प्रक्रति ने आज ये केसी
ली अंगड़ाई है
बहुत दिनों बाद, आज फिर वो सुबह आई है
रचना