ये रिश्ते
आग़ है, तूफ़ान है
रिसता हुआ नासूर है
कयामत हैं, आपदा हैं
राख़ है,राख मे जलती चिंगारी हैं
दर्द है,आह है
सिसकता घाव है
बदहवासी है,शोर है
बिखरा अहसास है
चोट है,ज़ख़्म है
बार बार उधड़ने वाला मलहम है
चीत्कार है, व्यंग्य है
तड़प है, रुदन है
तूफ़ान के पहले सी ख़ामोशी है
बवंडर है,आंधी है
आंखों मे चुबने वाली धूल है
सबसे सिर्फ आशा है
गिरेबान मे झांकना है ही नहीं
ऐक टीस है,ऐक सुलगता अंगारा है
ना स्पंदन है, ना अश्वासन है
बस मुकाबला है, हौड है
आप पीछे, मै जीतूँ , दौड़ है
बस तलाश है, उस अपनेपन की
जो शायद कभी था ही नहीं
और मैं मुखोटों मे ढूंढती रही
मैं भी कभी शान्त थी, आश्वस्त थी
बेफिक्र थी, तृप्त थी
मस्त थी,यहाँ तक की सिध्हस्त थी
अब विशवास डगमगा रहा है
यकीन पर यकीन करने से डर लगता है
अपने होने तक का अहसास
औरों से ज्यादा मुझे ही नहीं है
शून्य है, खाली है ,मंजिल ही नहीं है
शायद कभी थी ही नहीं
और मै झूठे अहसास मे जीती रही
आश्चर्य है अपनी मूरकता पर
रचना