दुल्हन
सजी,संवरी, अलसाई सी
सहमी- सहमी, सकुचाई सी
अरमानों के हिंडोले मे उडकर
दुल्हन, नए घर आई
सुन्दरता की मूरत थी वो
तेजस्वी, खुबसूरत थी वो
चंदा भी शर्मा जाये
ऐसी सपनों सी परी थी वो
उसका खूब सम्मान हुआ
सबने हाथों हाथ लिया
रिश्तेदारों,सबने मिलकर
उसको बहुत मान दिया
सिमटी –सिमटी, ल्रजाई सी
नयी कोम्पल, तरुनाई सी
मस्त, सुगन्धित पुरवाई सी
वो एकटक सबको निहारने लगी
उसको अपनी रोती माँ का
पल भर मे ही ध्यान हुआ
अपने घर ,आँगन, कमरे का
बिखरा सब सामान दिखा
हादसों का, किस्सों का
फिर इक ऐसा दौर चला
कुछ पलों मे उसने ख़ुद को
कहां – कहां पर गौर किया
भईया की पीठ पर
वो सवारी खाना
या नंगे पैर गली मे
स्टापू खेलना
घर की छत पर
घर – घर खेलना
या गुड्डा – गुड्डी की शादी मे
इंटों पर खाना बनाना
माँ से नाराज़ होना
रूठना, फिर उसका मनाना
भाई से झगडा करना
हल्ला करना, माँ का रोना
बीमारी मे, इम्तिहान मे
अपने साथ साथ रातों रात
माँ का भी जगना
पूछो तो, अनसुना करना
माँ का हर हाल मे
प्रेरित करना
खुद भी पढना, पढाना
जागृत करना
स्कूल से कॉलेज
कॉलेज से यूनिवर्सिटी
माँ का हर पड़ाव पर
पढ़ने को प्रोत्साहित करना
माँ के हाथों बने
कद्दू के फूल के पकोड़े
या खस्ता पूरी – छोले
मीठे मे खीर या हलवा,हो ले
भाई की उंगली पकड़ कर
३ रूपए मे सिनेमा जाना
वापसी पर रुक जाना
समोसे खाकर आना
जन्मदिन पर
उपहारों से लद जाना
पार्टी मे खेलना – कूदना
ख़ुद पर इतराना
इतने मे दुल्हन बुलाई गई
जयमाला की रस्म निभाई गई
रिश्ते फोटो सेशन मे सजाये गये
शादी की एल्बम बनाई गई
दुल्हन इस सब मे
अंदर ही अंदर सोचती रही
सास माँ बन पायेगी क्या?
देवर भाई बन पायेगा क्या?
वैसा खुलापन
प्रसन्न मन होगा क्या?
वैसा सीधा सरल
अपनापन होगा क्या?
कितना बड़ा इम्तिहान है
कैसा संविधान है
हम सब ने बना दिया
ये कैसा विधि – विधान है
– रचना