“करोना – युग परिवर्तन”- [A Poem written by Mrs. Rachna Khushu.]

Kind Attention:-

Starting from today onwards as and when something special worth a read and thought-provoking comes to us-we shall be delighted to publish the same for our friends and readers. This new category would be called the “Special Feature”.

Would appreciate your contribution in any form of poem or prose or even the current-affairs commentary. You can surely send it to ravitiku@gmail.com.The same shall be published here.

CONTRIBUTION #1

Today here is a poem written by my very talented sister-Mrs. Rachna Khushu.She has been an Advocate and an Oath Commissioner earlier now working as the Legal Advisor in the Private sector.

This poem very aptly describes the present situation in the pandemic-stricken modern yet helpless world. Enjoy the thoughtful wordplay.

"करोना – युग परिवर्तन"- [A Poem written by Mrs. Rachna Khushu.]
MRS.RACHNA KHUSHU
दिनांक: 27.07.2021.

करोना – युग परिवर्तन

भी कल की ही बात है

सब सामान्य था सिथिर था

एकाएक सब रुक गया

सब कुछ था पर जैसे कुछ भी नहीं

जंग हूई ही नहीं और सब परास्त हो गये

बोम्ब नहीं, राकेट नहीं, मिसाइल नहीं

पर सभी शातीग्रेस्थ हो गये

चलते फिरते पहिये रुक गये

स्कूल,कॉलेज,दफ्तर सिर्फ ईमारत बन कर रह गये

लोगों से भरे बाज़ार, लोगों को तरस गये

खाने- खिलाने का व्यवसाय दराशाई हो गया

जीने का तरीका ही बदल गया 

एहसास ही बदल गया, नजरिया ही बदल गया 

लोग शुन्य मे घिर गये

कोई सिरा ही नज़र नहीं आया

तीसरी जंग की कहते थे, सुनते थे

पर ये तो बगेर कहे – सुने हो गई

हाँ, सच्चाई से सब रूबरू हो गये

जिन्दा रहने के लिए, ताम-जाम ज़रूरी नहीं

दो रोटी,दो कपडे और सर पर छत काफी है

प्रकृति सिखाती है, संभल जाओ

अपनी मूल ज़रूरतों को पहचानो

हम ऐक- ढूसरे के पूरक हैं,सहायक हैं

साजेदारी निभाओं, खुद भी स्वच्छ साँस लो, हमें भी लेने दो

रिश्ते-नाते सब हैं, लेकिन उधर अकेले जाना है

ज़िन्दगी बहुमूल्य हो गई

धन- धोलत,रुपया पैसा, सब अर्थहीन हो गया

लोग असलियत से रूबरू हो गये

लम्बी- लम्बी हांकने वालों को चुप सी लग गई

एकदम से मुह का जायका ही बदल गया

घर का खाना ५ स्टार होटल का सा लगने लगा

आप कितने महारत हैं, अब जाना

आप कितने सहनशील हैं,अब पहचाना

जो घर पर टिकते ही नहीं थे

उन्हें घर स्वर्ग लगने लगा

घर पर कहाँ क्या रखा है,पता चल गया

घर ही तीर्थ है,चार धाम की यात्रा है

ऐक सुखद अछूता एहसास हो गया  

आत्म मंथन करने का धोअर चल पड़ा

आपकी छुपी प्रतिभा को दर्शित होने का उद्देश्य मिल गया

दिखावे के जीवन से असलियत मे आ गये

फजूल खरची को लगाम और सुंदर सोच को परवाज़ मिल गई

घर मे ऐक – दूसरे के साथ होने भर का नया अनुभव हुआ

जटिल कुछ भी नहीं है, हम बना देते हैं

घटित कुछ भी नहीं है, हम पनाह देते हैं

ये नया सवेरा है,नया सृजन है

युग परिवर्तन है, इसे स्वीकार करते हैं

आईये इसे गले लगा लें, इस से श्रृंगार करते हैं

रचना

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