फूडी
चल चलें ना यार कुछ खा कर आयें
पानी-पूरी, चाट, समोसा या दाबेली
पिज़ा – बर्गर, फ्रेंच टोस्ट खाने का मन नहीं है
कुछ तीखा मसालेदार चटपटा हो जाये
ऑफिस की ब्रेक मे तो खा ही लेते थे
वर्क फ्रॉम होम मे ब्रेक ही नहीं मिलता
उसपर लोअकदोव्न की ऐसी तेसी
घर पर ही बनाओ तो वैसा नहीं बनता
सपनों मे लार टपकती है
ढेर सारी चीजों का आर्डर कर डालते हैं
साला, खाने बैठो तो
नींद खुल जाती है
ये कैसा अनर्थ हुआ यार
पेट पर ही लात पढ़ गई
वो रबड़ी, रसमलाई,लच्छेदार कुल्फी
मुह मे धार बहाकर हवा हो गई
अब सिर्फ चलचित्र जैसा चलता है
वडा पाव, पाव भाजी, डोसा इडली
आंखों के सामने रैंप वाक करके
मुस्कुराते हुए चिड़ा कर चली जाती है
ग्रिल्ड संद्वित्च, पोहा और तंदूरी ने
हार्मोनल इमबैलेंस कर डाला
पनीर टिक्का और चटपट्टी भेल के ना मिलने ने
मुह का जायका दूबर कर डाला
चटनियों का तो पूछो मत
हाय तोबा कर डाली
लहसुन की,नारियल की, जीभ जला डाली
पुदीने की, धनिये की,नाक –आंख दोनों बहा डाली
जो भी है, कुछ भी कहिये, जायका बड़ी चीज है
सवादिष्ट व्यंजन और पकवान सबको अजीज है
चिल्ड कोक, जुसिएस और मोक्तैल
हर उमर, हर मौसम, हर दिल अजीज है
वो मटके की कुल्फी, वो बर्फ का गोला
बेठ कर झूले पर खाने को , दिल ये डोला, वो डोला
अब आई है बारिश तो चल भुट्टा खा आयें
गर्म – गर्म निम्बू लगा, नमक मिर्च वाला चटकाएं
कुछ नहीं तो चल गर्म चाय हो जाये
साथ मे आलू –मिर्ची के पकोड़े हो जाएँ
मरना तो सच है, जीने की उमर कम है
खाकर, पीकर , डकार मार कर ही जाएँ
रचना