वो कोमल, कच्चा, सच्चा बचपन
वो अल्हड,चंचल, निश्छल बचपन
कुम्हला गया है,कहीं खो गया है
उसे कैसे वापिस लायें
कैसे उसका नूतन श्रींगार करें
ऐक गति थी , ऐक मादक नशा था
अपनी धुन मे बचपन मगन था
अभी हंसी खो गई है, जगह सोच ने ली है
कैसे फिर से ठहाकों की बौछार करें
निडर था, अडिग था, बहता झरना था
जो सोच लिया,वो करना ही करना था
अभी पहले ये करना है,फिर वो करना है
बस एहतियात ही करना है
पहले सा सरल कब करना है?
कबड्डी थी, कुश्ती थी
खो – खो, पोषण पा,सतोली थी
अब तो छूने पर ही प्रतिबंद है
बदला खेल तंत्र है
कुछ तो शिक्षा प्रणाली ने
पहले ही आघात किया
उसपर कोविड ने
भीषण कुठाराघात किया
सर्वांगीण विकास ऐक
पहेली बन कर रह गई
उस पर घर के अंदर रहकर
जान पर भी बन गई
इन प्यारे, दुलारे बच्चों का
उत्साह, हमें बडाना है
इनका खोया, धूमिल बच्चपन
फिर से इन्हें, लौटाना है
रचना